1.मां विंध्यवासिनी की पूजा रात के समय में की जाती है। साधक को चाहिए की नहा धोकर साफ और वस्त्र धारण करे।
2.इसके बाद विंध्यवासिनी साधना यंत्र प्रतिष्ठापित करे ।
3.सामने की तरफ सात गोल सुपारी रख लें। घी का दीपक एवं 7 अगरबत्ती जलाएँ ।
4.रक्षा सूत्र से सोने के बेहद बारीक तार से विंध्येश्वरी यंत्र को लपेटें तथा सफलता के लिए प्रार्थना करें । जिस कार्य में तुरंत सफलता चाहिए ।
5.पूजन के बाद विंध्येश्वरी माला से मंत्र का जाप करें। 9 दिन तक रोज 45 माला मंत्र जप विंध्यवासिनी यंत्र के सामने आवश्यक है। यह साधना 11 दिनों तक नियमित रूप से की जानी चाहिए ।
तुरंत सफलता के लिए माँ विंध्यवासिनी की पूजा करना चाहिए। शास्त्रों में माँ विंध्यवासिनी की रहस्यमयी तांत्रिक साधना वर्णित है। यह साधना अत्यंत गोपनीय है। इसके माध्यम से किसी भी कार्य में तुरंत सफलता प्राप्त होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो तुरंत सफलता प्राप्ति के लिए विंध्यवासिनी साधना उपयोगी होती है।
विनियोग
ओम् अस्य विंध्यवासिनी मन्त्रस्य
विश्रवा ऋषि अनुष्टुपछंद: विंध्यवासिनी
देवता मम अभिष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग:।
न्यास
ओम विश्रवा ऋषये नम: शिरसि
अनुष्टुप छंदसे नम: मुखे ।।2।।
विंध्यवासिनी देवतायै नम: हृदि ।।3।।
विनियोगाय नम: सर्वांगे ।।4।।
करन्यास
एहं हिं अंगुष्ठाभ्यां नम:।।1।।
यक्षि-यक्षि तर्जनीभ्यां नम:।।2।।
महायक्षि मध्यमाभ्यां नम: ।।3।।
वटवृक्षनिवासिनी अनामिकाभ्यां नम:।।4।।
शीघ्रं मे सर्वसौख्यं कनिष्ठिकाभ्यां नम:।।5।।
कुरू-कुरू स्वाहा करतलकर पृष्ठाभ्यां नम:।।6।।
ध्यान
अरूणचंदन वस्त्र विभूषितम।
सजलतोयदतुल्यन रूरूहाम्।।
स्मरकुरंगदृशं विंध्यवासिनी।
क्रमुकनागलता दल पुष्कराम्।।
प्रयोग विधि
इस महत्वपूर्ण एवं अत्यंत गोपनीय साधना को भाग्यशाली साधक ही कर पाता है। अमावस्या की रात को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर सामने विंध्यवासिनी साधना मंत्र प्रतिष्ठापित करे। सामने की तरफ सात गोल सुपारी रख लें। घी का दीपक एवं 7 अगरबत्ती जलाएँ।
सप्त सुपारी पूजा
ओम् कामदायै नम:।।1।।
ओम् मानदायै नम:।।2।।
ओम् नक्तायै नम: ।।3।।
ओम् मधुरायै नम: ।।4।।
ओम् मधुराननायै नम: ।।5।।
ओम् नर्मदायै नम: ।।6।।
ओम् भोगदायै नम:।।7।।
तत्पश्चात सोने के बेहद बारीक तार से विंध्येश्वरी यंत्र को लपेटें तथा सफलता के लिए प्रार्थना करें। जिस कार्य में तुरंत सफलता चाहिए उसका सिलसिलेवार स्मरण करें। जैसे उस कार्य के आरंभ से लेकर मंत्र साधना तक क्या-क्या उतार-चढ़ाव आए। कितनी बाधाएँ आईं और सफलता के संबंध में आपकी शंकाएँ क्या-क्या हैं।
पूजन के बाद स्फटिक की माला से मंत्र का जाप करें। 11 दिन तक रोज 51 माला मंत्र जप विंध्यवासिनी यंत्र के सामने आवश्यक है।
मंत्र
एह्ये हि यक्षि महायक्षि
विंध्यवासिनी शीघ्रं मे
सर्व तंत्र सिद्धि कुरू-कुरू स्वाहा।
चालीसा संग्रह
श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा – Shri Vindhyesvari Chalisa
माता विन्ध्येश्वरी रूप भी माता का एक भक्त वत्सल रूप है और कहा जाता है कि यदि कोई भी भक्त थोड़ी सी भी श्रद्धा से माँ कि आराधना करता है तो माँ उसे भुक्ति – मुक्ति सहज ही प्रदान कर देती हैं । विन्ध्येश्वरी चालीसा का संग्रह किया गया है।
|| दोहा ||
नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदंब।
संत जनों के काज में, करती नहीं बिलंब॥
|| चौपाई ||
जय जय जय विन्ध्याचल रानी। आदि शक्ति जगबिदित भवानी॥ सिंह वाहिनी जय जगमाता। जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता॥
कष्ट निवारिनि जय जग देवी। जय जय संत असुर सुरसेवी॥ महिमा अमित अपार तुम्हारी। सेष सहस मुख बरनत हारी॥
दीनन के दु:ख हरत भवानी। नहिं देख्यो तुम सम कोउ दानी॥
सब कर मनसा पुरवत माता। महिमा अमित जगत विख्याता॥
जो जन ध्यान तुम्हारो लावे। सो तुरतहिं वांछित फल पावे॥
तू ही वैस्नवी तू ही रुद्रानी। तू ही शारदा अरु ब्रह्मानी॥
रमा राधिका स्यामा काली। तू ही मात संतन प्रतिपाली॥
उमा माधवी चंडी ज्वाला। बेगि मोहि पर होहु दयाला॥
तुम ही हिंगलाज महरानी। तुम ही शीतला अरु बिज्ञानी॥
तुम्हीं लक्ष्मी जग सुख दाता। दुर्गा दुर्ग बिनासिनि माता॥
तुम ही जाह्नवी अरु उन्नानी। हेमावती अंबे निरबानी॥
अष्टभुजी बाराहिनि देवा। करत विष्णु शिव जाकर सेवा॥
चौसट्टी देवी कल्याणी। गौरि मंगला सब गुन खानी॥
पाटन मुंबा दंत कुमारी। भद्रकाली सुन विनय हमारी॥
बज्रधारिनी सोक नासिनी। आयु रच्छिनी विन्ध्यवासिनी॥
जया और विजया बैताली। मातु संकटी अरु बिकराली॥
नाम अनंत तुम्हार भवानी। बरनै किमि मानुष अज्ञानी॥
जापर कृपा मातु तव होई। तो वह करै चहै मन जोई॥
कृपा करहु मोपर महारानी। सिध करिये अब यह मम बानी॥
जो नर धरै मातु कर ध्याना। ताकर सदा होय कल्याणा॥
बिपत्ति ताहि सपनेहु नहि आवै। जो देवी का जाप करावै॥
जो नर कहे रिन होय अपारा। सो नर पाठ करे सतबारा॥
नि:चय रिनमोचन होई जाई। जो नर पाठ करे मन लाई॥
अस्तुति जो नर पढै पढावै। या जग में सो बहु सुख पावै॥
जाको ब्याधि सतावै भाई। जाप करत सब दूर पराई॥
जो नर अति बंदी महँ होई। बार हजार पाठ कर सोई॥
नि:चय बंदी ते छुटि जाई। सत्य वचन मम मानहु भाई॥
जापर जो कुछ संकट होई। नि:चय देबिहि सुमिरै सोई॥
जा कहँ पुत्र होय नहि भाई। सो नर या विधि करै उपाई॥
पाँच बरस सो पाठ करावै। नौरातर महँ बिप्र जिमावै॥
नि:चय होहि प्रसन्न भवानी। पुत्र देहि ताकहँ गुन खानी॥
ध्वजा नारियल आन चढावै। विधि समेत पूजन करवावै॥
नित प्रति पाठ करै मन लाई। प्रेम सहित नहि आन उपाई॥
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा। रंक पढत होवै अवनीसा॥
यह जनि अचरज मानहु भाई। कृपा दृष्टि जापर ह्वै जाई॥
जय जय जय जग मातु भवानी। कृपा करहु मोहि पर जन जानी॥
|| इति श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा समाप्त ||